Friday, October 25, 2019

मोदी की चुनावी कामयाबी पर आर्थिक सुस्ती का कितना असर - नज़रिया

इस साल मई महीने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारी बहुमत के साथ दोबारा सत्ता में लौटे थे. मोदी को ये विशाल जनादेश तब मिला, जब देश में बेरोज़गारी की दर 45 साल में सबसे ऊंचे स्तर पर थी. ऐसे में बहुत से लोगों के ज़हन में ये सवाल उठा कि क्या बीजेपी ने चुनावों को आर्थिक क्षेत्र में प्रदर्शन से अलग करने में कामयाबी हासिल कर ली है.

मई 2019 में मिली जीत बहुत शानदार थी. क्योंकि मोदी ने 2014 के मुक़ाबले इस बार ज़्यादा सीटें जीती थीं. जबकि 2014 के चुनाव में विपक्ष में होने की वजह से उनके लिए राह आसान थी.

2019 के चुनाव में मोदी की जीत में बड़ा रोल कश्मीर में एक चरमपंथी हमले के बाद पाकिस्तान के बालाकोट में की गई एयर स्ट्राइक ने निभाया था. इससे सवाल ये उठा था कि क्या भारतीय वोटर के लिए रोज़ी-रोटी से ज़्यादा अहम मुद्दा राष्ट्रवाद है?

कुछ लोगों ने ये भी तर्क दिया कि 2019 में नरेंद्र मोदी की जीत की बड़ी वजह उनकी कल्याणकारी योजनाएं थीं. उन्होंने घर और शौचालय बनवाए थे और ग़रीबों को गैस कनेक्शन बांटे थे.

लेकिन, अब हम ये कह सकते हैं कि राष्ट्रवाद और जनकल्याण के इस आयाम की भी अपनी सीमाएं हैं.

सेंटर फ़ॉर द मॉनिटरिंग ऑफ़ इंडियन इकोनॉमी की पिछले महीने आई एक रिपोर्ट में कहा गया है कि हरियाणा में बेरोज़गारी की दर पूरे देश से ज़्यादा यानी 28.7 फ़ीसद है. कल आए हरियाणा चुनाव के नतीजों से साफ़ हो गया कि बीजेपी ने 2019 के लोकसभा चुनावों के मुक़ाबले विधानसभा चुनाव में 22 प्रतिशत वोट गंवा दिए.

बीजेपी ने ऐलान किया था कि उसका लक्ष्य राज्य की 90 में से 75 विधानसभा सीटें जीतने का है. लेकिन, पार्टी कुल 40 सीटें ही जीत सकी, जो बहुमत से 6 सीट कम है.

हालांकि, बहुमत न मिलने के बावजूद बीजेपी, हरियाणा में सरकार बनाने जा रही है. लेकिन, नतीजों से साफ़ है कि अगर मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने ये चुनावी लड़ाई जीत के लिए लड़ी होती, तो बीजेपी के हाथ से हरियाणा निकल भी सकता था.

हरियाणा में लोगों की जो नौकरियां गई हैं, उनमें से कुछ छंटनी गुरुग्राम के पास ऑटोमोबाइल कंपनियों के केंद्र से भी हुई है. लेकिन, हरियाणा में कृषि क्षेत्र के साथ भी कुछ मसले रहे हैं. राज्य में फसल की क़ीमतें पिछले दो साल से लगातार गिर रही हैं.

बीजेपी के मातृ संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक पदाधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर हिंदुस्तान टाइम्स से कहा कि हरियाणा के ख़राब नतीजों की एक बड़ी वजह आर्थिक सुस्ती भी है.

इस पदाधिकारी के मुताबिक़, "हालांकि सरकार सुस्ती से उबरने के लिए लगातार कई क़दमों का एलान कर रही है, लेकिन आज लोग आर्थिक सुस्ती की वजह से फ़िक्रमंद हैं."

महाराष्ट्र में बीजेपी ज़्यादा आसानी से सरकार बनाने जा रही है. लेकिन, उसकी सीटों की संख्या में कमी आई है. अब बीजेपी अपनी नख़रेबाज़ सहयोगी शिवसेना पर ज़्यादा निर्भर होगी. बीजेपी और शिवसेना के गठबंधन को वोटों का मामूली नुक़सान ही हुआ है.

आमतौर पर इसे अच्छा चुनावी प्रदर्शन ही कहा जाना चाहिए. क्योंकि पाँच साल का कार्यकाल पूरा करने के बाद बहुत कम ही सरकारें दोबारा सत्ता में वापस आती हैं. लेकिन, जब विपक्ष कमज़ोर हो और आप के पास नरेंद्र मोदी और देवेंद्र फडणवीस जैसे नेता हों, तो उम्मीद ये की जाती है कि आप का गठबंधन सीटें बढ़ाएगा, उसकी सीटें कम होने की अपेक्षा कोई नहीं करता.

अर्थव्यवस्था की बुरी स्थिति के बारे में बात करने से बचने के लिए बीजेपी ने हरियाणा और महाराष्ट्र में अपना चुनाव प्रचार जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने पर ही सीमित रखा.

इस साल पांच अगस्त को मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर के लिए ये विशेष संवैधानिक व्यवस्था ख़त्म कर के राज्य को मिला विशेष दर्जा समाप्त कर दिया था. बीजेपी को उम्मीद थी कि वो राष्ट्रवाद की लहर पर सवार होकर इन दोनों राज्यों में जीत हासिल कर लेगी. लोग आर्थिक चुनौतियों की अनदेखी कर के उसे समर्थन देंगे. दूसरे शब्दों में कहें, तो, बीजेपी को लोकसभा चुनाव वाला प्रदर्शन दोहराने की अपेक्षा थी.

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